1. मिट्टी का चयन: बीटरूट के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए ताकि फसल को अच्छे पोषक तत्व मिल सकें। 2. खेत की जुताई: खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और पौधों की जड़ें आसानी से विकसित हो सकें। इसके बाद खेत को समतल करें और पानी की उचित निकासी की व्यवस्था करें। 3. खाद और उर्वरक: 8-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति एकड़ खेत में डालें। इसके साथ ही, 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, और 40 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें।
1. बीज का चयन: हमेशा उच्च गुणवत्ता वाले और रोग मुक्त बीजों का चयन करें। बीजों को प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। 2. बुवाई का समय: सितंबर का महीना बीटरूट की बुवाई के लिए आदर्श होता है। इस दौरान तापमान और नमी की स्थिति फसल के लिए उपयुक्त होती है।
1. बीजों को पंक्तियों में बोएं, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखें। 2. बीजों को 1.5-2.0 सेमी की गहराई पर बोएं।
1. पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। 2. सिंचाई का अंतराल: फसल की वृद्धि के अनुसार 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। अधिक पानी या जलभराव से बचें, क्योंकि इससे जड़ सड़न की समस्या हो सकती है। 3. जल निकासी की व्यवस्था: बीटरूट की खेती के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था आवश्यक है, ताकि फसल की जड़ों को सड़ने से बचाया जा सके।
1. खरपतवार की रोकथाम: खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए 15-20 दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें। 2. रासायनिक नियंत्रण: आवश्यकता पड़ने पर खरपतवारनाशी का उपयोग करें, लेकिन ध्यान रखें कि इसका उपयोग फसल की वृद्धि अवस्था के अनुसार ही किया जाए।
1. रोग प्रबंधन: बीटरूट की फसल में पत्तियों का धब्बा रोग, डाऊनी मिल्ड्यू और पाउडरी मिल्ड्यू जैसे रोग आम होते हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिए जैविक और रासायनिक फफूंदनाशकों का उपयोग करें। 2. कीट प्रबंधन: बीटरूट की फसल पर एफिड्स, कटवर्म और पत्तियों के चबाने वाले कीटों का प्रकोप हो सकता है। कीट नियंत्रण के लिए जैविक नियंत्रण जैसे नीम के तेल का उपयोग करें।
1. बुवाई के 20-25 दिन बाद नाइट्रोजन का आधा हिस्सा और पोटाश का पूरा हिस्सा दें। 2. 40-50 दिन बाद नाइट्रोजन का बचा हुआ हिस्सा दें। 3. खाद प्रबंधन: गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखने में मदद करता है और फसल की वृद्धि को बढ़ावा देता है।